उत्तराखंड
के
हरिद्वार
जिले
में
श्यामपुर
इलाके
में
मॉर्निंग
वॉक
पर
निकले
एक
युवक
को
बाघ
ने
निवाला
बना
डाला।
शव
नेपाली
फार्म
के
पास
मिला।
पौढ़ी
के
पास
बीडिंग
गांव
में
52 वर्षीय सुलोचना
देवी
पर
तेंदुए
ने
हमला
किया
तो
उन्होंने
साहस
दिखाते
हुए
उस
पर
पत्थर
बरसाए
और
हल्ला
मचाया।
जान
तो
बच
गई,
लेकिन
वह
बुरी
तरह
घायल
हैं।
श्रीनगर
गढ़वाल
के
कुछ
दिन
पहले
देहरादून
में
एफआरआई
के
अहाते
में
तेंदुए
ने
लड़की
की
जान
ले
ली।
हालांकि
इस
तेंदुए
को
शिकारियों
ने
मार
गिराने
का
दावा
किया।
यह
मादा
तेंदुआ
थी।
जिसके
गर्भ
में
तीन
शावक
होने
के
गम
में
उस
शिकारी
ने
हमेशा
के
लिए
शिकार
से
तौबा
कर
ली।
हालांकि
इस
घटना
के
बाद
से
देहरादून
के
आसपास
कई
तेंदुए
देखे
जाने
की
खबरें
आई
हैं।
आलम
यह
है
कि
जंगलों
के
किनारे
बसे
शहरों
में
अब
मॉर्निंग
वॉक
पर
जाना
जोखिमभरा
हो
गया
है।
राज्य के ग्रामीण इलाके हों या शहरी, सभी जगहों पर तेंदुए और बाघ का आतंक सुर्खियां बटोर रहा है। डर इस बात का है कि दिन में भी इनकी सक्रियता दिख रही है। तेंदुए पहाड़ों में बस्तियों के नजतीक रिहाइश बना चुके हैं। इस कारण कई गांव और छोटे कस्बों में तेंदुओं के आतंक से शाम होते ही कर्फ्यू जैसे हालात हैं। देहरादून में टपकेश्वर इलाके में एक छत से तेंदुआ दिखने के बाद वहां पिंजड़ा लगाया गया। नेपाली फार्म के समीपवर्ती हरिद्वार से लगे कस्बे में गुलदार चार लोगों को एक साल के भीतर निवाला बना चुका है। लेकिन बीते रविवार की घटना के बाद वहां गुलदार (तेंदुए) की गतिविधि पर नजर रखने को कैमरा ट्रैप लगाया गया है। जरूरत पड़ी तो पिंजड़ा लगाया जाएगा।
डर ऐसा है कि देहरादून के समीपवर्ती सहसपुर, प्रेमनगर, राजपुर , कैंट इलाकों में दिन छिपते ही गुलदारों की सक्रियता के चलते लोग घरों में दुबकने को मजबूर हैं। ग्रामीण तेंदुआ दिखने पर उन्हें लाठीडंडों से पीटकर और पिंजड़े में फंसने पर उस पर तेल छिड़ककर आग लगाकर गुस्से का इजहार कर चुके हैं। पहाड़ों से उतरकर गुलदार मैदानों तक पहुंच गए हैं। कभी बकरियों और पालतू कुत्तों को निशाना बनाने वाले गुलदार अब इंसानों पर हमले से गुरेज नहीं कर रहे। एक अनुमान के अनुसार हर साल उत्तराखंड में तेंदुए के 200 से ज्यादा हमले हो रहे हैं। 2000 के बाद से अब तक 415 के आसपास लोग इन तेंदुओं का निवाला बन चुके हैं। पूरे साल तमाम पहाड़ी जिलों में गुलदारों के आतंक से दहशत के समाचार मिलते रहे हैं।
राज्य के ग्रामीण इलाके हों या शहरी, सभी जगहों पर तेंदुए और बाघ का आतंक सुर्खियां बटोर रहा है। डर इस बात का है कि दिन में भी इनकी सक्रियता दिख रही है। तेंदुए पहाड़ों में बस्तियों के नजतीक रिहाइश बना चुके हैं। इस कारण कई गांव और छोटे कस्बों में तेंदुओं के आतंक से शाम होते ही कर्फ्यू जैसे हालात हैं। देहरादून में टपकेश्वर इलाके में एक छत से तेंदुआ दिखने के बाद वहां पिंजड़ा लगाया गया। नेपाली फार्म के समीपवर्ती हरिद्वार से लगे कस्बे में गुलदार चार लोगों को एक साल के भीतर निवाला बना चुका है। लेकिन बीते रविवार की घटना के बाद वहां गुलदार (तेंदुए) की गतिविधि पर नजर रखने को कैमरा ट्रैप लगाया गया है। जरूरत पड़ी तो पिंजड़ा लगाया जाएगा।
डर ऐसा है कि देहरादून के समीपवर्ती सहसपुर, प्रेमनगर, राजपुर , कैंट इलाकों में दिन छिपते ही गुलदारों की सक्रियता के चलते लोग घरों में दुबकने को मजबूर हैं। ग्रामीण तेंदुआ दिखने पर उन्हें लाठीडंडों से पीटकर और पिंजड़े में फंसने पर उस पर तेल छिड़ककर आग लगाकर गुस्से का इजहार कर चुके हैं। पहाड़ों से उतरकर गुलदार मैदानों तक पहुंच गए हैं। कभी बकरियों और पालतू कुत्तों को निशाना बनाने वाले गुलदार अब इंसानों पर हमले से गुरेज नहीं कर रहे। एक अनुमान के अनुसार हर साल उत्तराखंड में तेंदुए के 200 से ज्यादा हमले हो रहे हैं। 2000 के बाद से अब तक 415 के आसपास लोग इन तेंदुओं का निवाला बन चुके हैं। पूरे साल तमाम पहाड़ी जिलों में गुलदारों के आतंक से दहशत के समाचार मिलते रहे हैं।
वहीं, तेंदुओं की लगातार मौत से भी पशु क्रूरता के खिलाफ अभियान चलाने वाले वन विभाग के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। इनका कहना है कि वन विभाग बिना पूरी तरह जाने कि आखिर तेंदुआ दोषी है या नहीं, उन्हें मारने का परमिट जारी कर रहा है। वहीं, विभाग खुद को जनांदोलन के दबाव में देख रहा है। जिस घर का व्यक्ति ऐसे किसी हमले में मारा जाता है, वह क्षेत्रभर की सहानुभूमि बटोरकर वनविभाग पर धावा बोल देता है।
मानव बस्तियों में गुलदारों के घुस आने की घटना ने सरकार को भी चिंतित किया है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इंसान और जानवरों के संघर्ष पर गंभीर पहल करने के निर्देश वन विभाग को दिए हैं। उन्होंने वन विभाग से गुलदारों की फूड चेन को पुनर्जीवित करने पर बल देते हुए कहा कि प्रत्येक फॉरेस्ट डिविजन स्तर पर हिरन सहित छोटे जानवरों के लिए प्रजनन केंद्र बनाए जाएं। केन्द्र से इस संबंध में जंगल के किनारे बसे गांवों कस्बों के लिए बिजली की व्यवस्था, झाड़ी कटान, शौचालय निर्माण आदि में सहयोग करने को पत्र लिखने को भी कहा।
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